क्या 300 साल पहले भारत की जीडीपी थी सबसे ज्यादा, अमेरिका से कहीं ज्यादा था धनवान – News18

हाइलाइट्स

उस समय ग्लोबल जीडीपी में भारत का हिस्सा 25.9 फीसदी था. ब्रिटिश राज के शुरू होने के साथ इसमें गिरावट शुरू हुई
गांव स्वावलंबी ईकाई थे, गांवों की ज्यादातर वस्तुओं, खाद्यान्न और घी-तेल की खपत वहीं स्थानीय तौर पर ही हो जाती थी

एक जमाना था जब भारत की जीडीपी दुनिया में सबसे ज्यादा थी. ये कोई 300 साल पहले की बात है. तब भारत में अर्थव्यवस्था दुनिया में शीर्ष स्थिति में थी. गांव हमारी इकोनॉमी के मुख्य स्तंभ थे. कृषि की पैदावार संपन्नता को ताकत भी देती थी और आगे बढ़ाती थी. तब भारत को अमेरिका और ब्रिटेन से ज्यादा धनवान कहा जाता था. शोध बताते हैं कि पिछले 1800 सालों में भारत या तो सबसे बड़ी इकोनॉमी रही या फिर दूसरे नंबर की. हालांकि पिछले तीन दशकों से भारत फिर तेजी से दुनिया की समृद्ध अर्थव्यवस्था बनने की राह पर चल पड़ा है.

रिपोर्ट कहती है, अंग्रेजों के आने के बाद देश संसाधनों और समृद्धि के लिहाज से खोखला होने लगा. अंतरराष्ट्रीय निवेश प्रबंधन क्षेत्र की जानी मानी कंपनी “अबेरदीन एसेट मैनेजमेंट” की एशिया ब्रांच ने इस संबंध में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. रिपोर्ट का नाम था इंडिया- द जाएंट अवेकेन्स. रिपोर्ट कहती है कि जब अकबर के शासन के दौरान भारत के लोग अमेरिकियों, चीनियों और ब्रितानियों की तुलना में ज्यादा अमीर थे.

तब भारत की जीडीपी बहुत ज्यादा थी
रिपोर्ट के अनुसार 17वीं शताब्दी में राजस्व 17.5 मिलियन पाउंड तक पहुंच गया था. उस समय ग्लोबल जीडीपी में भारत का हिस्सा 25.9 फीसदी था. ब्रिटिश राज के शुरू होने के साथ इसमें जो गिरावट शुरू हुई तो ये 1970 तक गिरता ही रहा. 1991 से भारतीय जीडीपी में सुधार शुरू हुआ.

वर्ष 1600 के आसपास पहले भारत की जीडीपी और दूसरे देशों की जीडीपी (न्यूज18 ग्राफिक्स)

वर्ष 1000 से अब तक जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी
वर्ष                   भारत की जीडीपी
वर्ष 1000          28.9 फीसदी
वर्ष 1700          24.4 फीसदी
वर्ष 1820          16.1 फीसदी
वर्ष 1950          4.2 फीसदी
वर्ष 1979          03 फीसदी
वर्ष 2000          5.2 फीसदी
वर्ष 2015          7.1 फीसदी

कैसा था तब का शासनकाल
– अबुल फजल के आइन-ए-अकबरी के अनुसार 1556 से 1739 तक का समय मुगल साम्राज्य का स्वर्णकाल था. डब्ल्यूएच मोरलैंड ‘इंडिया एट द डेथ ऑफ अकबर ‘में कुछ ऐसा ही लिखते हैं. बादशाह जनता के धार्मिक कार्यकलापों में कोई दखल नहीं देता था. इसकी उन्हें पूरी आजादी थी.
– इसी दौरान तंंबाखू और मकई की फसलें बाहर से भारत लाई गईं थीं और बड़े पैमाने पर इनकी खेती से काश्तकारों को फायदा होने लगा था. इसके बाद इसी तरह मिर्च की फसल भी बाहर से यहां आकर फलना फूलना शुरू हुई.
– रेशम की कीड़ों से रेशम का उत्पादन 15वीं सदी में शुरू हुआ.
– भारत में गांवों में बढोतरी हुई लेकिन फिर गांवों की संख्या स्थिर हो गई.

सम्राट अकबर ने अपने शासनकाल के दौरान प्रशासकीय तौर पर कई सुधार किए, जो बाद में भी लंबे समय तक चलते रहे

तब कृषि और गांव थे इकोनॉमी के मुख्य स्तंभ
– भारत उस समय कृषि प्रधान देश था
– हर गांव अपने आपमें एक स्वावलंबी आर्थिक ईकाई था
– अकबर के शासनकाल में कृषि की जमीनी जोत बढ़ी थी
– हालांकि अकबर ने तालाब और सिंचाई के लिए व्यवस्था में बेहतरी की थी लेकिन देश की खेती आमतौर पर मानसुून पर ही निर्भर थी
– गेहूं, चावल, मक्का, बाजरा मुख्य खेती थी
– नील, कॉटन, गन्ना, सिल्क कार्मशियल खेती मानी जाती थी
-तंबाखू की खेती यकायक फायदेमंद हो गई थी
– अकबर के शासनकाल में कुल पैदावार पर एक तिहाई रेवेन्यू लिया जाता था. मुगलों के शासनकाल में हालांकि पिछली हुकुमतों की तुलना में मालगुजारी ज्यादा ली जाती थी. इसके लिए इलाकावार जागीरदार तय किये गए थे. अकबर के शासनकाल में हर इलाके से अनुमानित वार्षिक मालगुजारी निर्धारण के दीर्घकालिक प्रयास शुरू किए गए. ये व्यवस्था सौ साल तक बगैर बदलाव चलती रही. हालांकि इससे किसानों को बहुत दिक्कत होती थी
– अकबर के समय में पहली बार सभी हाकिमों को विभिन्न श्रेणीबद्ध पद (मंसब) प्रदान किए गए थे. इसमें पदों के अनुसार तनख्वाहें तय होती थीं.
– भारत से पहले मध्य एशिया के लिए गुलामों का निर्यात होता था लेकिन अकबर ने इस पर पाबंदी लगवा दी थी
– बादशाह और कुलीनों के अपने प्रतिष्ठानों में बड़ी संख्या में हाकिम, चाकर और गुलाम होते थे. जिनके उपभोग की अगल अावश्यकताएं थी, जो अधिक रोजगार पैदा करती थीं.
– विलासिता और हस्तशिल्प की वस्तुओं की शाही और कुलीन घरानों में मांग ने दस्तकारों को बहुत सहारा दिया.

सम्राट अकबर के शासनकाल में भारतीय बाजार

किसानों की स्थिति कैसी थी
– भिन्न फसल वाला हर खेत औसतन मुश्किल से 0.6 हेक्टेयर का होता था
– एक किसान की औसत जोत 2.8 हेक्टेयर से अधिक नहीं थी
– हर किसान के पास औसतन तीन बैल थे
– उन दिनों भारत आए कई विदेश लेखकों ने यहां की स्थिति को देखकर घोर अभाव और सख्त बदहाली जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल किया.

किस तरह के उद्योग थे
– ढाका और आसपास बड़े पैमाने पर कपड़ा निर्माण और सिल्क का काम, जिसकी विदेशों में मांग थी.
– शालों का उत्पादन
– ब्रास कॉपर, लकड़ी की साजसज्जा और आभूषणों का उद्योग
– मसालों से संबंधित उद्योग

क्या थी करेंसी
– सोने की मुहरें और चांदी के सिक्के चलते थे. इनका दूसरे साम्राज्यों से विनिमय हो जाता था. टकसाल में एक ही जगह सिक्के और मुहरें ढाली जाती थीं.

मुगलकाल में दिल्ली का जीवन

महंगाई और व्यापार
– अनाज और खाद्य वस्तुओं के रेट अलग अलग राज्यों में अलग थे
– अलग अलग प्रांतों में चीजों के दाम अलग थे

गांव कैसे होते थे
– गांव स्वावलंबी इकाइयां थे
– गांवों की ज्यादातर वस्तुओं, खाद्यान्न और घी-तेल की खपत वहीं हो जाती थी
– हुनरमंद कारीगर हैंडीक्राफ्ट और कलात्मक सामान बनाते थे, जिनकी बाहर काफी डिमांड थी
– गांव की अपनी पंचायत थी, जहां आमतौर पर सारे फैसले होते थे, कुछ ही फैसलों के इलाकेदार और इससे ऊपर जाने की नौबत आती थी
– एक गांव में सभी तरह के व्यावसायों के लोग रहते थे, मसलन- लोहार, बढई, मोची, सुनार, जमादार, कुम्हार आदि रोजाना के काम से संबंधित लोग
– 1592 में अकबर के साम्राज्य में 120 नगर और 3200 कस्बे थे.

अकबर अपने लावलश्कर के साथ शिकार पर

कैसा होता था घरेलू व्यापार
– खेतिहर पैदावारों और दूसरी वस्तुओं, मसलन नमक की भारी मात्रा इधर से उधर लाई जाती थी
– अनुमान है कि हर साल बंजारे कहलाने वाले घुमक्कड़ सौदागर 82.1 करोड़ मीट्रिक टन माल की दुहाई करते थे.
-दस्तकारी की वस्तुओं की ढुलाई बैलगाड़ियों और ऊंटगाड़ियों या फिर नदियों में चलने वाली नावों के जरिए की जाती थी
– कारवां जाने पहचाने रास्तों पर चलते थे. हालांकि सड़क के रास्तों से राहदारी (चुंगी) वसूली जाती थी

कैसी थी संचार व्यवस्था
– सरकार के पास घुड़सवार हरकारों के रूप में तीव्र संचार की व्यवस्था थी
– बड़े सौदागर पेशवर संदेशवाहकों का उपयोग करते थे

किन देशों में होता था एक्सपोर्ट
– एशिया और यूरोप के अन्य देशों में
– लाहौर, काबुल, मुल्तान, सूरत और मछलीपट्टनम बड़े व्यापारिक केंद्र थे

आयात और निर्यात
– इंडियन टैक्सटाइल, मसाले, काली मिर्च, नमक, नील, सिल्क आदि का निर्यात होता था
– सोना, चांदी, कीमती पत्थर, घोड़ों का आयात होता था
– हर साल ईरान से बड़े बड़े कारवां ईरानी, आर्मेनियाई और बनिया सौदागरों के माल लादकर आते थे

Tags: Economy, India economy, Indian economy, Mughal Emperor, Mughals, Rural economy

Source : hindi.news18.com