अजीब क्यों माना जा रहा है स्टील के घनत्व वाला बाह्यग्रह? – News18

बाह्यग्रहों की खोज करने के दौरान कई बार अनोखे और असामान्य ग्रह मिल जाते हैं. कई बार उनकी कुछ ऐसी विशेषताएं पता चलती हैं जो वैज्ञानिकों को यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आखिर ग्रह में इस तरह के गुण कैसे आ गए हैं. इसी तरह से वैज्ञानिक तब हैरान हुए जब उन्होंने एक नेप्च्यून के आकार के ग्रह का घनत्व स्टील के घनत्व के जैसा है. आम तौर पर इस तरह के आकार के ग्रह का घनत्व इतना नहीं पाया जाता है. लेकिन इससे भी ज्यादा हैरानी शोधकर्ताओं को तब हुई जब उन्होंने उसका कारण खोजा और पाया कि इस ग्रह के घनत्व के लिए ग्रहों का टकराव जिम्मेदार है जिससे इसकी संरचना में बहुत बड़ा बदलाव आ गया था.

स्टील से ज्यादा घनत्व?
यह नेप्च्यून के आकार के ग्रह का घनत्व स्टील से भी ज्यादा है जिसे अंतरराष्ट्रीय खगोलविदों की टीम ने खोजा है. TOI-1853b नाम के इस बाह्यग्रह का भारत उसके आकार के किसी भी दूसरे ग्रह से करीब दो गुना है. इसके घनत्व के असामान्य रूप से अधिक होने का अर्थ यही है कि इसका बहुत ज्यादा हिस्सा पथरीला है जबकि इस तरह के ग्रहों में ऐसा होता नहीं है.

एक बड़ा टकराव?
नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में यूनिवर्सिटी ऑफ रोन टोर वेरगेटा के लूका नेपोनिलो की अगुआई में वैज्ञानिकों ने सुझाया है कि यह ग्रहों के टकराव का नतीजा था. उस बहुत बड़े टकराव के कारण स ग्रह का हलका वायुमंडल और पानी ग्रह की चट्टानों को छोड़ कर बाहर निकल गया हो गया जिससे ग्रह का अधिकांश हिस्सा पथरीला ही रह गया होगा.

सौरमंडल में हो चुका है ग्रहों के बीच टकराव
ब्रिस्टल स्कूल ऑफ फिजिक्स के वरिष्ठ शोध सहयोगी और सहलेखक डॉ फिल कार्टर बताते हैं कि उनके पास इस बात के पक्के सबूत हैं कि हमारे सौरमंडल में ग्रहों के बीच एक बहुत ही ऊर्जावान टकराव हुआ होगा जिसके नतीजे के बारे में कहा जाता है कि पृथ्वी और चंद्रमा के तंत्र का निर्माण हुआ था. वहीं इस तरह का टकराव कुछ बाह्यग्रहों में भी होने के संकेत मिले हैं.

नेप्च्यून के आकार के इस तरह के ग्रह इतने ज्यादा पथरीले हो जाना आसान नहीं है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: NASA/JPL)

एक मॉडल का निर्माण
कार्टर बताते हैं कि हम जानते हैं कि बाह्यग्रहों के तंत्र हमारे सौरमंडल से बहुत ही ज्यादा अलग हैं. लेकिन फिर भी आमतौर पर उनके ग्रहों की संरचना हमारे सौरमंडल के पथऱीले ग्रहों और नेचप्चूयन यूरेनस जैसे बर्फीले विशाल ग्रहों के बीच की होती है. इस अध्ययन के जरिए शोधकर्ताओं ने एक बहुत ही विशाल टकराव का प्रतिमान या मॉडल बनाया जिसमें एक बहुत ही बड़ा टकराव नेप्च्यून जैसे विशाल ग्रह से हलका वायुमंडल और पानी या बर्फ को हटा पाया होगा जिससे इस टकराव के नतीजे में बने पिंड का घनत्व बहुत ज्यादा हो जाए.

किस गति से टकराव जरूरी
कार्टर बताते है कि उन्होंने पाया कि शुरुआती ग्रह का पिंड पानी से समृद्ध रहा होगा जिसने बहुत ही बड़ा टकारव झेला होगा जिसकी गति 75 किलोमीटर प्रति सेंकेंड की होगी जिसके नतीजे में TOI-1853b वैसा बन सका होगा जैसा कि वह आज दिखाई दे रहा है. इस ग्रह में ऐसे प्रमाण मिल रहे हैं जो बताते हैं कि पूरी गैलेक्सी में भी ग्रहों के निर्माण के समय विशाल टकराव कोई कम होने वाली घटना नहीं होगी. खोज से ग्रह निर्माण के कई सिद्धांतों को जोड़ा जा सकेगा जो बाह्यग्रह के निर्माण से संबंधित हैं.

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आमतौर पर इस तरह के आकार के बाह्यग्रह गुरु जैसे गैसीय ग्रह में तब्दील हो जाते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Shutterstock)

चौंकाने वाली बात क्या
यह खोज ग्रह निर्माण और विकास के बारे में नई जानकारी देने वाली साबित हो रही है. अध्ययन के सहलेखक और स्नातकोत्तर छात्र जिंगयाओ दोउ ने बताया कि यह ग्रह बहुत ही चौंकाने वाला है क्योंकि सामान्य रूप से ऐसे ग्रहों में हम इसके बहुत सी चट्टानों को ग्ररु जैसे विशाल गैसी ग्रह में तब्दील होते देखते हैं जहां घनत्व पानी के जैसा ही है, लेकिन TOI-1853b का आकार तो नेप्च्यून का है, पर घनत्व स्टील से अधिक है.

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Source : hindi.news18.com