
पुणे. पुणे के प्रतिष्ठित ‘इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स’ (आईयूसीएए) के दो वैज्ञानिकों ने शुक्रवार को कहा कि वे अपने उस मुख्य पेलोड के परिणामों का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, जिसे दो सितंबर को ‘आदित्य एल1’ मिशन के साथ प्रक्षेपित किया जाएगा. सूर्य मिशन से संबंधित उपग्रह को शनिवार को पूर्वाह्न 11.50 बजे श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से प्रक्षेपित किया जाएगा. ‘आदित्य एल1’ को सूर्य परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर ‘एल1’ (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा का वास्तविक अवलोकन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
आदित्य एल1 सात पेलोड ले जाएगा, जिनमें से चार सूर्य से प्रकाश का निरीक्षण करेंगे. आदित्य-एल1 मिशन के मुख्य पेलोड में से एक, सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (एसयूआईटी) को विकसित करने के लिए पिछले 10 वर्षों से जुटे वैज्ञानिक दुर्गेश त्रिपाठी और ए.एन. रामप्रकाश ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘हम बहुत उत्साहित हैं.’’ त्रिपाठी ने कहा, ‘यह सब 2013 में शुरू हुआ जब इसरो ने सूर्य का अध्ययन करने के लिए अपने मिशन की घोषणा की. फिर मैंने अपने सहयोगी ए.एन. रामप्रकाश से बात की, जो आईयूसीएए में प्रोफेसर भी हैं. हमने परियोजना पर काम करना शुरू किया और विभिन्न संस्थानों के कई सहयोगियों का सहयोग मांगा.’
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उन्होंने कहा, ‘एसयूआईटी सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों का अवलोकन करेगा. ये पराबैंगनी किरणें सौर वायुमंडल से उत्पन्न होती हैं, मुख्यतः सूर्य के निचले और मध्य वायुमंडल से. हमारे पास एसयूआईटी पर विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक फिल्टर हैं, और प्रत्येक फिल्टर का उपयोग करके, हम सूर्य के वातावरण में विभिन्न ऊंचाइयों को ‘मैप’ कर सकते हैं.’ उन्होंने कहा कि इसका मुख्य उद्देश्य सौर वातावरण में गतिशीलता को समझना है.
सूर्य के खास हिस्सों का अध्ययन
आदित्य एल-1 का काम सूर्य के क्रोमोस्फीयर और कोरोना की गतिकी का अध्ययन के साथ , कोरोनल हीटिंग, आंशिक आयनीकृत प्लाज्मा की भौतिकी, कोरोनल मास इजेक्शन की शुरुआत और सौर ज्वालाओं के गहन अध्ययन के जानकारी जमा करना होगा. इससे वैज्ञानिकों को सूर्य के वातावरण और उसकी जटिल प्रक्रियाओं का गहन अध्ययन करने का मौका मिलेगा.
और कुछ प्रक्रियाएं एवं घटनाएं भी
अपने शोधो के जरिए वैज्ञानिक कोरोनल मास इजेक्शन की प्रक्रिया को जानेंगे, अनियमित रूप से बनने वाली सौर ज्वालाएं, सतह वायुमंडल और दोनों की आपस में अंतरक्रियाएं को समझने का प्रयास करेंगे. सौर उत्सर्जन की घटनाएं और उनकी उत्पत्ति के कारकों को भी समझने में भी यह वेधशाला मददगार होगी.
आदित्य एल-1 से क्या हासिल करना चाहता है भारत?
इसरो के मुताबिक चूंकि सूरज सबसे नजदीकी तारा है, इसलिए दूसरे तारों के मुकाबले इसका अध्ययन आसान है. आदित्य एल-1 के जरिये सूर्य की ऊपरी सतह यानी फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर (वायुमंडलीय परत) और कोरोना (दहकता हुआ सबसे बाहरी भाग) के विस्तृत अध्ययन की योजना है. आदित्य एल-1 के जरिये हम दूसरी गैलेक्सी के तारों के बारे में और जानकारी हासिल कर सकते हैं. साथ ही सूर्य के अध्ययन से दूसरे ग्रहों के मौसम और उसके व्यवहार को भी समझा जा सकता है. इस मिशन के जरिये हासिल डाटा, भविष्य के दूसरे मिशन मसलन- शुक्रयान या मंगल मिशन के लिए भी बहुत कारगर साबित हो सकते हैं.
अब तक कौन-कौन से देश मिशन लॉन्च कर चुके हैं?
भारत से पहले अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा (NASA), यूरोप की स्पेस एजेंसी और जर्मनी ने अलग-अलग और संयुक्त रूप से सूर्य के अध्ययन के लिए मिशन भेजे हैं. नासा के 3 मिशन- सोहो (Solar and Heliospheric Observatory), पार्कर सोलर प्रोब और आइरिस (Interface Region Imaging Spectrograph) काफी चर्चित रहे हैं. पार्कर सोलर प्रोब मिशन, सूर्य के सबसे करीब पहुंचने वाला अंतरक्षि यान है.
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Tags: Aditya L1, ISRO, Solar Mission
FIRST PUBLISHED : September 02, 2023, 05:00 IST