'वन नेशन-वन इलेक्शन की राह में बड़े रोड़े' पूर्व चुनाव आयुक्तों ने गिनाई दिक्कतें, बोले- 2024 में संभव नहीं – News18

निवेदिता सिंह
नई दिल्ली.
केंद्र सरकार द्वारा देशभर में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की व्यवहार्यता तलाशने के लिए समिति गठित करने के बाद ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (One Nation One Election) पर चर्चा फिर से जोर पकड़ रही है. इसे लेकर न्यूज18 ने भारत के पूर्व चुनाव आयुक्तों से बात की, जिनका मानना है कि पूरे भारत में एक साथ चुनाव कराना आसान नहीं है और अगर यह तय भी हो जाए तब भी 2024 में ऐसा नहीं किया जा सकता.

एक राष्ट्र-एक चुनाव का मुद्दा समय-समय पर उठता रहता है और इस पर पहले भी कई अध्ययन किए जा चुके हैं. इस साल जुलाई में केंद्र सरकार ने राज्यसभा को सूचित किया था कि इसका व्यावहारिक रोडमैप और रूपरेखा तैयार करने के लिए इस मुद्दे को विधि आयोग के पास भेजा गया है. बता दें कि वर्ष 1967 तक भारत में लोकसभा चुनाव के साथ ही सारे विधानसभा चुनाव हुआ करते थे. वहीं सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग पहले ही इस विचार का समर्थन कर चुका है.

‘राज्य विधानसभाओं को कैसे भंग कर सकता है केंद्र’
वर्ष 1996 से 2002 तक मुख्य निर्वाचन आयुक्त का जिम्मा संभाल चुके पूर्व सीईसी मनोहर सिंह गिल ने
News18 से बात करते हुए कहा कि ‘लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराना संभव नहीं है, क्योंकि संविधान इसकी अनुमति नहीं देता है. उन्होंने बताया कि राज्यों में अलग-अलग तारीखों और महीनों पर विधानसभा चुनाव और उसके कार्यकाल होते हैं और सभी को एक ही पन्ने पर लाना संभव नहीं है. उन्होंने कहा, ‘अगर ऐसा करना है, तो संविधान को बदलना होगा. यह बेहद कठिन है. राजनीतिक फायदे के लिए पार्टियां इसके बारे में बात करती हैं.’

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उन्होंने बताया कि कई अन्य देशों के विपरीत, भारत में राज्य बहुत स्वतंत्र हैं. वह कहते हैं, ‘उन नेताओं को एक साथ लाना मुश्किल है, जो स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं. विभिन्न विषयों पर राज्यों के अलग-अलग विचार हैं. यह नहीं किया जा सकता और यह नहीं किया जाना चाहिए. भारत एक पासपोर्ट में कई देश की तरह है! पंजाब अलग है, पश्चिम बंगाल भी अलग है और तमिलनाडु भी अलग. यही बात ओडिशा, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों पर भी लागू होती है.’

गिल ने कहा कि एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं होगा, क्योंकि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग चुनाव चरण और कार्यकाल हैं. वह सवाल करते हैं, ‘सभी राज्यों की अपनी-अपनी प्रणाली है. केंद्र में बैठे लोगों के पास लोकसभा को भंग करने की शक्ति है. वे किसी भी विधानसभा को भंग नहीं कर सकते, चाहे वह पंजाब हो या हरियाणा. वे ऐसा कैसे कर सकते हैं?’

‘वन नेशन-वन इलेक्शन से होगी बड़ी सुविधा’
हालांकि इसे लेकर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का विचार थोड़ा अलग है. उन्हें यकीन जताया कि कम से कम 2024 में तो लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ नहीं हो सकते हैं.

कुरैशी ने News18 से बातचीत में कहा, ‘अभी, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को चुनावों के बीच रिसाइकिल किया जाता है. लोकसभा के साथ-साथ राज्य चुनावों में भी इन्हीं मशीनों का उपयोग किया जाता है. लेकिन अगर सभी चुनाव एक ही समय पर होंगे, तो हमें तीन गुना मशीनों की जरूरत होगी. इसके निर्माण में कुछ समय लगेगा. 2024 के चुनाव में तो यह संभव नहीं है.’

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वर्ष 2010 और 2012 के बीच चुनाव आयोग का नेतृत्व करने वाले कुरैशी ने कहा कि एक साथ चुनाव कराना न केवल चुनाव आयोग के लिए, बल्कि सभी के लिए सबसे सुविधाजनक बात होगी. हालांकि इसके साथ ही वह कहते हैं कि इसकी तैयारी के लिए कम से कम दो-तीन साल लगेंगे.

उन्होंने कहा, ‘मतदाता वही है, मतदान केंद्र वही है, चुनाव मशीनरी भी वही है और सुरक्षा तंत्र भी वही है. इसलिए जब आप एक मतदाता के रूप में मतदान केंद्र पर जाते हैं, तो एक समय में एक मशीन दबाने के बजाय, तीन स्तरों के लिए तीन मशीनें होती हैं और आप उन सभी को दबाते हैं और आपको पांच साल के लिए मुक्ति मिल जाती है.’ उनका मानना है कि इस मुद्दे पर गठित समिति सभी हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करेगी और उसके अनुसार निर्णय लेगी.

‘वन नेशन-वन इलेक्शन की राह में बड़े रोड़े’
एक अन्य पूर्व चुनाव आयुक्त ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा कि एक साथ चुनाव कराना व्यावहारिक नहीं होगा जैसा कि पहले हुआ था. वह कहते हैं, ‘भारत में वर्ष 1951 और 1967 के बीच एक साथ चुनाव होते थे, लेकिन इसमें बदलाव क्यों हुआ? क्योंकि कुछ विधानसभाएं पहले ही भंग कर दी गई थीं या कुछ राज्यों में स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं किया जा सका था. इसलिए अंततः, जब और जैसी जरूरत पड़ी, राज्यों में फिर से चुनाव हुए. वे छह महीने से ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते. यही स्थिति लोकसभा में भी हुई. कई बार ऐसा भी हुआ जब राज्य तो ठीक-ठाक काम कर रहे थे, लेकिन केंद्र में किसी भी पार्टी को स्पष्ट जनादेश नहीं मिला. हम भविष्य में इसे कैसे नियंत्रित कर सकते हैं?’

पूर्व सीईसी ने आगे कहा कि भले ही सभी राज्य और पार्टियां सहमत हो जाए, ‘जो बहुत दुर्लभ है’, और हमारे यहां जनवरी में चुनाव होते हैं, तो ‘इस बात की क्या संभावना है कि सभी राज्यों और लोकसभा को स्पष्ट बहुमत मिलेगा? यह कौन सुनिश्चित करेगा कि सभी राज्य और लोकसभा अगले पांच साल तक बिना व्यवधान के सरकार चलाएंगे? अगर कोई राज्य या केंद्र पांच साल तक सरकार चलाने में विफल रहा तो क्या होगा?’

हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इससे राजनीतिक दलों और सरकार दोनों के लिए धन बचाने में मदद मिलेगी, लेकिन इसके लिए स्पष्ट रोडमैप होना जरूरी है.

संविधान तक में करना होगा बदलाव
एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान के कम से कम पांच अनुच्छेदों में संशोधन की जरूरत है. ये संसद के सदनों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 83; राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा के विघटन से जुड़ा अनुच्छेद 85; राज्य विधानमंडलों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 172; राज्य विधानमंडलों के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 174; और राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित अनुच्छेद 356…

जैसा कि एसवाई कुरैशी ने रेखांकित किया इस कदम में एक और बाधा है और वह है अतिरिक्त ईवीएम/वीवीपीएटी की उपलब्धता और इसमें बड़ी रकम खर्च हो सकती है.

इन मशीनों का जीवन केवल 15 वर्ष है और इसलिए प्रत्येक मशीन का उपयोग उसके जीवनकाल में लगभग तीन या चार बार ही किया जा सकता है. इसके अलावा, हर 15 साल के बाद उन्हें बदला जाएगा और उस पर फिर से भारी रकम खर्च होगी. हालांकि ये कुछ ऐसे विषय हैं जिन पर समिति चर्चा करेगी. उम्मीद की जा रही है कि केंद्र इस महीने के अंत में आयोजित होने वाले संसद के विशेष सत्र में इस मुद्दे को उठा सकता है.

Tags: Election commission, One Nation One Election

Source : hindi.news18.com