
सूरज का ताप और उसकी हरकतों की खोज-खबर के लिए भारत ने अपना आदित्य एल1 मिशन दूर आसमान में स्थित लैग्रेंज प्वाइंट-1 की ओर रवाना कर दिया है. चंद्रयान-3 मिशन की कामयाबी के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन- इसरो के वैज्ञानिकों ने अब सूरज के अध्ययन के लिए सोलर मिशन आदित्य-एल1 आज 2 सितंबर, शनिवार को श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट से सुबह साढ़े 11 बजे सफलतापूर्व लॉन्च कर दिया.
सूर्य को हम देवता मानते हैं, क्योंकि समूची सृष्टि सूरज की ऊर्जा से ही चलती है. सूरज की चमकीली किरणों के साथ दिन निकलता है और लालिमा के साथ दिन ढल जाता है. सूरज को लेकर हमारे धर्म शास्त्रों और साहित्य में तमाम कविता-कहानियां प्रचलित हैं. प्रसिद्ध बाल साहित्यकार द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ने सूरज पर बच्चों के लिए कई सुंदर कविताओं की रचना की. द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की कई कविताएं विभिन्न पाठ्यक्रमों में शामिल हैं. आज जहां हम सूरज की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, वहीं हम सूरज को समर्पित कुछ कविताओं को याद कर रहे हैं. प्रस्तुत हैं द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की सूरज पर कविताएं-
सूरज निकला
सूरज निकला, चिड़ियां बोलीं
कलियों ने भी, आंखें खोलीं
आसमान में छायी लाली
हवा बही सुख देने वाली
नन्हीं नन्हीं किरणें आयीं
फूल हँसे कलियां मुसकायीं।
—
सूरज सदा अकेला चलता
कष्ट पड़ें चिंता न करो तुम
ये यों ही आते जाते हैं।
फूल सदा कांटों में खिलते
सेजों पर मुरझा जाते हैं।
दुख सहन करते जो वे ही
औरों को सुख पहुंचाते हैं।
दीपक जलते स्वयं, तभी वे
पथ के तम को हर पाते हैं।
बाधाएं आतीं, आने दो
रुकते कभी न चलने वाले।
तोड़ पर्वतों, चट्टानों को
बहते नद – निर्झर मतवाले।
कर लेते निर्माण स्वयं ही
अपने पथ का चलने वाले।
चीर वक्ष चट्टानों के,
हैं बहते निर्झर झरने नाले।
चलने वालों को दुनियां में
कभी न कोई रोक सका है।
सरिता की बहती धारा को
कौन यहां जो बांध सका है।
सरिता की धारा मुसकाकर
कहती पथ पर बढ़ते जाओ।
बाधायें जो मिलें राह में
उनसे उठकर लड़ते जाओ।
तोड़ पर्वतों, चट्टानों को
नदियों से बह जाना सीखो।
ओलों की वर्षा छाती पर
धरती से सह जाना सीखो।
पंच अपरिचित, तुम एकाकी हो,
सोचो यह कभी न पल भर।
सूरज सदा अकेला चलता
आसमान के सूने पथ पर।
सुख की साथी है दुनिया यह
दुख में काम कौन आता है।
देख सुखता तरु विहगों का
दल चुपके से उड़ जाता है।
सच्चे साथी हैं वे ही जो
दुख में सदा साथ रहते हैं।
धार सूखने पर भी तट
सरिता का साथ नहीं तजते हैं।
सभी नहीं दुनियां में अपने
मन वांछित फल पा पाते हैं।
उगते फूल बहुत उपवन में
किंतु नहीं सब खिल पाते हैं।
सोच न कर दुर्दिन पड़ने पर
सब मुंह मोड़ लिया करते हैं।
अपने आंसू ही आंखों को
रोती छोड़ दिया करते हैं।
—
सूरज गुस्से में
जब जब देखा उगता सूरज
देखा भरा हुआ गुस्से में।
जब जब देखा चलता सूरज
देखा बड़ा गरम गुस्से में।
जब जब देखा ढलता सूरज
तब भी लाल-लाल गुस्से में।
पता नहीं क्या बात रात-दिन
रहता क्यों सूरज गुस्से में?
आये मेरे पास, सुनाऊं
उस कहानी और किस्से में।
दूध मलाई दूं, अम्मा ने
रक्खी जो मेरे हिस्से में।
—
यह भी पढ़ें- कविता के माध्यम से बच्चों को बताएं ‘चार दिशाएं’, ‘सात दिन’ और ‘हिंदी महीनों’ के बारे में
सूरज की जीत
एक बार छिड़ गई बहस यह
हवा और सूरज में
कौन अधिक बलवान,
शक्तिशाली है हम में तुम में।
बहुत देर तक हुई बहस
पर हो न सका निर्णय
दोनों ने आपस में मिलकर
किया अंत में यह तय।
चलते राही के कपड़े जो
सहज उतरवा लेगा
हम दोनों में वही अधिक
सबसे बलवान रहेगा।
फिर क्या? पवन चला सन-सन
पहले उसकी थी बारी
वस्त्र उड़ा कर ले जाने में
लगा शक्ति दी सारी।
लेकिन ज्यों-ज्यों वे पवन का
पल-पल बढ़ता जाता
त्यों-त्यों पथिक वस्त्र अपने
कसता, लपेटता जाता।
थका पवन जब सूरज ने
गरमी अपनी फैलाई
बढ़ती हुई प्रचंड धूप से
सब दुनिया अकुलायी।
कहीं किसी भी तरु का कोई
पत्ता एक न हिलता
आग बरसती थी जैसे
कण-कण, तृण-तृण था जलता
तर हो गया पसीने से तन
भीगे कपड़े सार
घबरा गया पथिक भी,
उसने अपने वस्त्र उतारे।
दूर फेंक उनको जा बैठा
वह छाया पा तरु की
सोचो स्वयं जीत किसकी थी
हवा या कि सूरज की?
—
.
Tags: Books, Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature
FIRST PUBLISHED : September 02, 2023, 13:30 IST