
हाइलाइट्स
जेट एयरवेज को 2018 में बड़ा नुकसान झेलना पड़ा.
यहां से कंपनी फिर कभी वापस नहीं लौटी.
टाटा करना चाहती थी निवेश लेकिन नरेश गोयल ने नकारा.
नई दिल्ली. विशेष धनशोधन रोधी अधिनियम (पीएमएलए) अदालत ने जेट एयरवेज के संस्थापक 70 वर्षीय नरेश गोयल को बैंक धोखाधड़ी मामले में शनिवार को 11 सितंबर तक ईडी की हिरासत में भेज दिया. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने यहां एक अदालत को बताया कि जेट एयरवेज द्वारा उधार ली गई धनराशि का इस्तेमाल इसके संस्थापक नरेश गोयल ने ‘‘व्यक्तिगत लाभ और समृद्धि’’ के लिए दुरुपयोग किया था. उन पर केनरा बैंक से लिए कथित 538 करोड़ रुपये के दुरुपयोग का आरोप है.
नरेश गोयल एक समय पर देश की सबसे बड़ी घरेलू एयरलाइन के मालिक थे, फिर ऐसा क्या हुआ कि पूरी बाजी ही पलट गई. आज हम आपको नरेश गोयल, उनकी जिद और उस जिद के कारण हुए जेट एयरवेज के दुर्भाग्यपूर्ण अंत के बारे में बताएंगे.
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जेट एयरवेज की शुरुआत
नरेश गोयल का जन्म पंजाब के संगरूर में हुआ. कॉलेज की पढ़ाई भी पंजाब से ही की और फिर अपने एक रिश्तेदार की ट्रैवल एजेंसी में कैशियर बन गए. वह आगे चलकर इंडिपेंडेट जनरल सेल्स एजेंट (GSA) बन गए. इस दौरान उन्होंने कई एयरलाइन कंपनियों के अधिकारियों से जान-पहचान बना ली. GSA उस समय पर देश में अंतरराष्ट्रीय विमान कंपनियों के प्रतिनिधियों की तरह काम करते थे और उनका रुतबा अच्छा होता था. यह 1990 के दशक की बात है. अपने कनेक्शन के दम पर उन्होंने एक छोटा विमान खरीद लिया. इसके बाद 1993 में जेट एयरवेज ने एयर टैक्सी के रूप में काम शुरू किया. तब कुवैत एयर और गल्फ एयर इसमें हिस्सेदार थे. बाद में दोनों ने ही कंपनी का साथ छोड़ दिया. 2004 में चेन्नई से कोलंबो के बीच एयरलाइंस ने पहली अंतरराष्ट्रीय उड़ान भरी. 2006 तक यह देश की सबसे बड़ी घरेलू विमान कंपनी बन गई थी. कंपनी ने 2005 में शेयर बाजार में भी कदम रख लिया. सबकुछ ठीक जा रहा था.
कहां हुई गलती
ऐसा माना जाता है कि नरेश गोयल ने 2 बड़ी गलतियां की जिसका हर्जाना जेट एयरवेज को भुगतना पड़ा. पहली गलती यह कि 2007 में उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी एयर सहारा को 1450 करोड़ रुपये में खरीद लिया. इस डील से जेट एयरवेज को वित्तीय से लेकर कानूनी तौर पर कई बड़ी परेशानियां मिल गईं. वह दौर सस्ती एयरलाइंस के उदय का था. जेट की मंशा भी यही थी इसलिए उसने यह डील भी की. लेकिन दांव उलटा पड़ा और कंपनी के पास अपने मुकाबलों की तुलना में किराये कम करने के लिए बजट ही नहीं रहा.
दूसरी गलती मानी जाती है नरेश गोयल का 10 वाइड-बॉडी एयरबस ए330 और बोइंग 777 की मिक्स्ड फ्लीट खरीदने का. जानकार मानते हैं कि इससे संसाधनों की कॉस्ट भी बढ़ गई. उन्होंने इन जहाजों को महल जैसा बनाने की कोशिश की. सीटों को घटाकर 308 कर दिया जबकि अंतरराष्ट्रीय स्टैंडर्ड 400 था. इस चक्कर में बहुत बड़ा रेवेन्यू उनके हाथ से निकल गया. उन्होंने मुनाफे को लेकर अपने सलाहकारों की बात सुनना बंद कर दिया. 2008 की मंदी ने कंगाली में आटा और गीला कर दिया. 2008 में ही 70 फीसदी वाइड-बॉडी फ्लाइट जेट द्वारा लीज कर दी गई. 2011-12 में कंपनी को पहली बार गंभीर वित्तीय तनाव झेलना पड़ा. इसके बाद कंपनी का गर्त में जाना शुरू हो गया.
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वित्त वर्ष 18 की आखिरी तिमाही
वित्त वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही में जेट एयरवेज को 1036 करोड़ रुपये का घाटा हुआ. जबिक इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में कंपनी को 602 करोड़ का लाभ हुआ था. 11 तिमाही नतीजों में यह कंपनी का पहला घाटा था. इसके बाद ऑडिट कंपनियों ने कंपनी के परिचालन जारी रखने पर शंका जताना शुरू कर दिया. 2019 में कंपनी ने 100 हवाई जहाजों का परिचालन रोक दिया. टाटा समेत अन्य कंपनियों से निवेश की बात परवान नहीं चढ़ सकी. अप्रैल 2019 में कंपनी ने सारी ही उड़ानें रोक दी. कंपनी के पास कैश खत्म हो चुका था. गोयल की हिस्सेदारी 50.1 फीसदी से घटकर इसकी आधी रह गई. कर्जदाताओं के पास जेट की आधी हिस्सेदारी पहुंच गई. कंपनी ने बैंकों से और 983 करोड़ का कर्ज मांगा लेकिन बैंकों ने बगैर किसी गारंटी के लोन देने से मना कर दिया. कहा जाता है कि टाटा इसमें निवेश के लिए तैयार थी लेकिन गोयल ने इस सौदे को ठुकरा दिया. कंपनी अपने पायलट व कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दे पाई.
कंपनी के शेयर
मार्च 2005 में कंपनी के एक शेयर की कीमत 1334 रुपये थी. तब यह सबसे महंगे शेयरो में से एक था. आज यह लगभग 95 फीसदी की गिरावट के साथ 64.40 रुपये पर पहुंच गया है. पिछले महीने जुलाई के अंत में इस शेयर में तेजी देखने को मिली और 23 अगस्त तक इसमें लगातार अपर सर्किट लगा. हालांकि, उस दिन के बाद से इसमें फिर लगातार गिरावट जारी है.
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FIRST PUBLISHED : September 03, 2023, 15:46 IST