रूस ने क्यों खोद डाला था दुनिया का सबसे गहरा गड्ढा? जानिये 2 अरब साल पुरानी कौन सी चीज मिली थी – News18

भारत ने चंद्रयान-3 के बाद आदित्य एल-1 को भी सफलता पूर्वक लॉन्च कर दिया है. अब गगनयान और शुक्रयान की तैयारी में जुटा है. तमाम देशों की अंतरिक्ष में पहुंचने की होड़ काफी पुरानी है. इसकी शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी. इसी दौर में दुनिया के 2 सबसे ताकतवर देशों के बीच एक और अजीब होड़ शुरू हुई थी और वो थी धरती के अंदर सर्वाधिक गहराई में जाने की. अमेरिका और सोवियत यूनियन के बीच इस होड़ में, रूस बाजी मार गया था.

कब और कैसे से शुरू हुई पूरी कहानी?

1950 का दशक था. द्वितीय विश्व युद्ध के ठीक बाद अमेरिका और सोवियत यूनियन के बीच कोल्ड वॉर का दौर शुरू हो चुका था. दोनों देशों के बीच सैन्य से लेकर अंतरिक्ष तक, लगभग हर मोर्चे पर होड़ मच गई. दोनों, खुद को एक-दूसरे से ज्यादा ताकतवर साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे थे. इसी बीच अमेरिका और सोवियत यूनियन के बीच एक और प्रतिस्पर्धा शुरू हुई और वो थी धरती की सर्वाधिक गहराई में जाने की. दोनों देश देखना चाहते थे कि आखिर कौन धरती के अंदर सबसे ज्यादा गहराई में जा सकता है.

अमेरिका क्यों हट गया था पीछे?

अमेरिका (America) ने सबसे पहले अपने प्लान पर काम शुरू किया और प्रोजेक्ट को नाम दिया ”मोहोल” (Mohole). मैक्सिको के नजदीक ग्वाडलूप आइलैंड (Guadalupe Island) पर एक जगह चुनी और ड्रिलिंग भी शुरू कर दी. साल 1961 आते-आते 601 फिट तक ड्रिल भी कर दिया. लेकिन 1966 में अमेरिकी कांग्रेस ने बजट और मिसमैनेजमेंट का हवाला देते हुए इस प्रोजेक्ट की फंडिंग से इनकार कर दिया. जिसके बाद अमेरिका का प्रोजेक्ट वहीं लटक गया.

रूस ने कर दिया 12.26 किमी तक ड्रिल

उधर, सोवियत रूस अपने प्रोजेक्ट पर काम करता रहा. मरमंस्क प्रांत (Murmansk province) में फिनलैंड और नॉर्वे बॉर्डर पर कोला आइलैंड में ड्रिलिंग के लिए जगह चुनी. यह जगह आर्कटिक सर्किल के करीब थी. प्रोजेक्ट को नाम मिला ‘कोला सुपर डीप बोरहोल’ (Kola Superdeep Borehole). मई 1970 में ड्रिलिंग शुरू की और साल 1989 आते-आते 12.26 किलोमीटर (40,230 फिट) तक ड्रिल कर दिया. हालांकि यह धरती की कुल गहराई का 2% से भी कम था, लेकिन इतनी गहराई में तापमान 180 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया.

Kola Superdeep Borehole की गहराई करीब 15 बुर्ज खलीफा जितनी है.

लेकिन 1989 में शुरू हुई असली मुसीबत

असली मुसीबत इसके बाद शुरू हुई. वैज्ञानिकों ने और ड्रिल करने की कोशिश की, लेकिन ड्रिलिंग मशीन और दूसरे उपकरण इतने तापमान को झेल ही नहीं पा रहे थे. इतने तापमान में नीचे की चट्टानें एक तरीके से प्लास्टिक जैसा व्यवहार करने लगी थीं. हालांकि सोवियत यूनियन, साल 1992 तक कोशिश करता रहा. उसकी इच्छा कम से कम 15 किलोमीटर तक ड्रिल करने की थी, लेकिन 1989 की गहराई से जरा भी आगे नहीं बढ़ पाया. earthdate.org की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसी बीच सोवियत यूनियन का पतन हुआ और पैसों की कमी रोड़ा बन गई. आखिरकार खुदाई रोकनी पड़ी.

चीखती-चिल्लाती आवाजें और ‘नर्क का द्वार’…

कोला सुपर डीप बोरहोल से जुड़ा एक मिथक भी खासा चर्चित है. ऐसा कहा जाता है जब सोवियत रूस 40,230 फिट यानी 12.26 किलोमीटर से आगे ड्रिल करने की कोशिश कर रहा था, उसी वक्त गड्ढे के अंदर एक चैंबर टूट गया और अंदर से भयानक चीखने-चिल्लाने जैसी आवाजें सुनी गईं. हालांकि इसकी कभी पुष्टि नहीं हो पाई, लेकिन इसी के बाद कोला सुपर डीप बोरहोल को ‘नर्क का द्वार’ कहा जाने लगा और दावा किया गया कि इन आवाजों के चलते ही रूस ने खुदाई बंद कर दी थी.

अब वहां क्या हो रहा है?

फिलहाल ‘कोला सुपर डीप बोरहोल’ (Kola Superdeep Borehole). को पूरी तरह सील कर दिया गया है. साल 2005 तक यहां एक रिसर्च स्टेशन हुआ करता था, लेकिन अब ये जगह पूरी तरह वीरान पड़ी है. हां, गाहे-बगाहे वैज्ञानिक यहां जाते रहते हैं. साथ ही भू-विज्ञान में दिलचस्पी रखने वाले पर्यटकों के बीच भी ये जगह खासी लोकप्रिय है.

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कोला सुपर डीप बोरहोल को अब पूरी तरह सील कर दिया गया है.

रूस को खुदाई से क्या हासिल हुआ?

सोवियत रूस भले ही 15 किलोमीटर की गहराई तक नहीं पहुंच पाया, लेकिन उसका प्रोजेक्ट कई मायनों में अहम और सफल रहा था. पूरी ड्रिलिंग के दौरान, गड्ढे से हाइड्रोजन, हीलियम, नाइट्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैस बाहर निकलती रहीं। लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाली और साइंटिफिक नजरिये से अहम चीज 22,000 फीट (6.7 किमी) की गहराई पर मिली.

वो थी 2 अरब वर्ष पुराने सूक्ष्म जीवाश्मों की 24 प्रजातियां. ये सूक्ष्म जीवाश्म (Microfossils) ऑर्गेनिक कार्बन और नाइट्रोजन कंपाउंड में लिपटे थे. वैज्ञानिकों के मुताबिक इसी के चलते ये इतनी गहराई में भी सुरक्षित रहे और तापमान बर्दाश्त कर पाए.

आज भी जारी है होड़

सोवियत रूस के बाद भी कई देश धरती की गहराई में जाने की कोशिश करते रहे और ड्रिल भी किया, लेकिन Kola Superdeep Borehole से ज्यादा गहराई में नहीं जा पाए. मसलन, जर्मनी के बावारिया में जर्मन कॉन्टिनेंटल डीप ड्रिलिंग प्रोग्राम ( German Continental Deep Drilling Program) के तहत 29,859 फिट यानी 9.1 किलोमीटर तक खुदाई हुई. इस गहराई तक आते-आते तापमान 260°C तक पहुंच गया और खुदाई रोकनी पड़ी थी. इसके अलावा कतर और रूस में कई तेल के कुओं की 10.7 किमी तक खुदाई हुई है, लेकिन कोला सुपर डीप होल को कोई पीछे नहीं छोड़ पाया है.

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Source : hindi.news18.com