सूर्य की किन प्रक्रियाओं का अध्ययन करेगा इसरो का आदित्य L1? – News18

हाइलाइट्स

आदित्य एल1 वेधशाला पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर स्थापित होगी.
इसके सात उपकरण सूर्य के वायुमंडल और उसकी बाहरी सतह का अवलोकन करेंगे.
ये उपकरण कोरोनल मास इजेक्शन, सौर पवनों और ज्वालाओं का विशेष अध्ययन करेंगें

सूर्य के विस्तृत अध्ययन के लिए भारत की विशेष वेधशाला आदित्य एल1 अंतरिक्ष के खास स्थान एल1 बिंदु पर स्थापित की जाएगी. आदित्य एल1 के साथ 7 खास तरह के उपकरण जा रहे हैं जिनके जरिए यह वेधशाला सूर्य के वायुमंडल के उसके हिस्सों, उनकी कुछ खास प्रक्रियाओं का अध्ययन करेगी. इस अभियान में उपयोग में होने वाले इन सात उपकरणों में से पांच इसरो के और दो उपकरण भारतीय शैक्षणिक संस्थानों के हैं. यह वेधशाला सूर्य और पृथ्वी के बीच पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर पर स्थापित होगी जहां से यह लगातार सूर्य और उसकी कुछ खास प्रक्रियाओं का अवलोकन करेगी.

कौन से सात उपकरण?
वेधशाला में कुल सात उपकरणों का उपयोग होगा. ये उपकरण विजिबल एमिशन लाइन कोरोनोग्राफ (वीईएलसी), सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (सूट), सोलर लो एनर्जी एक्स रे स्पैक्ट्रोमीटर  (SoLEXS या सोलेक्सेस), हाईएनर्जी ए1 ऑर्बिटिंग एक्स रे स्पैक्ट्रोमीटर (एचईएल1ओसएस), आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (एसपेक्स), प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (पापा) और एडवांस ट्राई-एक्सियल हाई रिजोल्यूशन डिजिटल मैग्नोमीटर्स हैं.

वायुमंडल और उसके हिस्से
आदित्य एल1 अभियान का प्रमुख उद्देश्य सूर्य के वायुमंडल और खास तौर पर उसके बाहरी आवरण की प्रक्रियाओं का अध्ययन करना होगा. वेधशाला खास तौर पर सूर्य के वायुमंडल के सबसे बाहरी हिस्से कोरोना के बहुत ही ज्यादा गर्म होने के कारणों की पड़ताल करेगी. इसके साथ ही उसी परत में कोरोनल मास इजेक्शन, के निर्माण का भी अध्ययन करेगी.

कुछ अहम सवाल भी
इसके अलावा आदित्य एल1 के उद्देश्यों में सौर पवनों की निर्माण, उनके बहुत ही तेज गति से होने वाला उत्सर्जन, उनके वितरण के कारणों को भी समझना शामिल है. इसके साथ सौर ज्वालाएं सूर्य से किन परिस्थितियों में निकलती हैं, क्या उनका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है या वे सिर्फ नियमित तौर पर ही निकलती रहती हैं  सूर्य से आवेशित किन परिस्थितियों में निकलते हैं. ऐसे कई सवालों के जवाब तलाशे जाएंगे.

आदित्य एल1 के सात उपकरण सूर्य से आने वाले विभिन्न विकिरण और उत्सर्जनों का अवलोकन कर सकेंगे. (फाइल फोटो)

ऊपरी परत का अधिक तापमान क्यों
सूर्य के वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत कोरोना कहते हैं यही पर सौर ज्वाला आने पर उनका पता चलता है यही परत एक तरह से सूर्य के बाहरी अंतरिक्ष से छूने का काम करती है. इस परत का तापमान (20 लाख केल्विन) अंदर की तापमान की तुलना में बहुत ही ज्यादा होता है. आदित्य एल1 के उपकरणों से इसका कारण जानने का प्रयास किया जाएगा.

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कोरोनल मास इजेक्शन
इसके अलावा कोरोनल मास इजेक्शन सूर्य की इस बाहरी परत पर होने वाले खतरनाक विस्फोट होते हैं जिनसे भारी मात्रा में चुंबकीय प्रभाव क्षेत्र और प्लाज्मा निकलता है. इसे सूर्य पर आने वाले भूकंप भी कहते हैं इसके अध्ययन वीईएलसी उपकरण के जरिए होगा. इससे सीएमई का निर्माण कैसे होता है, ये कब होते हैं जैसे कई सवालों के जवाब मिल सकेंगे.

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सूर्य पर होने वाले विस्फोट और उसने निकलने वाले चुंबकीय क्षेत्र एवं प्लाज्मा के रहस्य भी सुलझ सकेंगे. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Shutterstock)

क्या करेंगे अन्य उपकरण
सोलर अल्ट्रावॉलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (सूट) फोटोस्फियर और क्रोमोस्फियर से आने वाले विकिरणों का अवलोकन करेगा. सोलोक्सेस और एचईएल1ओसएस सूर्य का एक तारे के तौर पर अध्ययन करेंगे. एस्पेक्स का काम अंतरिक्ष के मौसम और पापा का काम सौर पवनों और कणों का अध्ययन करने में सहयता करना होगा, जबकि एडवांस ट्राई-एक्सियल हाई रिजोल्यूशन डिजिटल मैग्नोमीटर्स स्थानीय मैग्नेटिक फील्ड की जानकारी जुटाने का काम करेगा.

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आदित्य एल1 वेधशाला का एक प्रमुख कार्य पृथ्वी के पास के अंतरिक्ष के मौसम का अध्ययन करना भी होगा जो कि पार्कर प्रोब जैसे यान नहीं कर सकेंगे जिन्हें गहन अध्ययन के लिए सूर्य के पास भेजा गया है. पृथ्वी के ही पास रह कर आदित्य एल1 सूर्य से आने वाले विकिरण, आवेशित महीन कण और अन्य तरंगों का अध्ययन कर  लैगरेंज एक बिंदु के आपपास के वातावरण पर जानकारी एकत्र करेगा.

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Source : hindi.news18.com